किसी भी भाषा के प्रचार-प्रसार में आरंभ से ही मीडिया का सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान रहा है | यह सही है कि आम बोलचाल की भाषा सहजता व स्वाभाविकता से प्रचार-प्रसार पा जाती है परंतु यह भी सही है कि आम बोलचाल की भाषा कभी भी वह मानक रूप धारण नहीं कर पाती जो किसी भाषा को सही मायने में भाषा का कलेवर दे सके | जब कोई भाषा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रयुक्त होकर जनसामान्य के द्वारा व्यवहृत होने लगती है तभी वह भाषा का स्वीकृत रूप बनती है |
आरंभ में पालि व प्राकृत जनसामान्य की भाषा थी परंतु साहित्य की भाषा संस्कृत थी | मध्यकाल में जनसामान्य की भाषा न होने पर भी फारसी भाषा का महत्व बना रहा | ब्रिटिश काल से लेकर आज तक लगातार अंग्रेजी भाषा लगातार अपने पांव पसारती जा रही है जबकि सभी जानते हैं कि अंग्रेजी भाषा भारत में जनसामान्य की भाषा नहीं है | अतः मीडिया द्वारा प्रायोजित भाषा भले ही बहुसंख्यक लोगों द्वारा हेय समझी जाए परंतु आरंभ में उनकी आलोचना का विषय बनकर उनके व्यवहार में प्रवेश कर जाती है व कुछ समय पश्चात अधिकांश लोगों द्वारा स्वीकार कर ली जाती है | हिंदी भी इस मायने में अपवाद नहीं है |
वैदिक संस्कृत, लौकिक संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, अवहट्ठ के क्रमों से गुजरते हुए आज हिंदी जिस रूप में हमारे सामने है वह देशी-विदेशी अनेक भाषाओं के शब्दों, मुहावरों और लोकोक्तियों से समृद्ध हुई है | हिंदी में यह परिवर्तन सायास नहीं वरन विभिन्न लेखकों, कवियों, पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े विद्वानों के द्वारा किसी क्षेत्र-विशेष व किसी विशेष परंपरा से जुड़े क्षेत्रीय शब्दों के स्वाभाविक प्रयोग से अनायास हुआ है |
आरंभिक दौर में प्रिंट मीडिया ने इस भूमिका का बखूबी निर्वहन किया | आज भी किसी भाषा को समुन्नत करने में मीडिया की भूमिका सर्वोपरि है परंतु आज प्रिंट मीडिया को कहीं पीछे छोड़ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इस दिशा में काफी आगे बढ़ चुका है | इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने अन्य भाषाओं की भांति हिंदी के प्रचार-प्रसार व समुन्नयन में महती भूमिका निभाई है |
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी सोशल मीडिया ने हिंदी भाषा व साहित्य के विकास में जिस क्रांतिकारी भूमिका का निर्वहन पिछले लगभग एक दशक में किया है उसने सबको विशेषत: परंपरागत प्रिंट मीडिया के पक्षधरों को अचंभित कर दिया है |
जहां आज सोशल मीडिया के माध्यम से प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके नवोदित लेखक हिंदी साहित्य की मुख्यधारा में प्रवेश कर रहे हैं वहीं स्थापित हिंदी साहित्यकार भी सोशल मीडिया को माध्यम बनाकर अधिक से अधिक पाठकों तक अपनी पहुंच बना रहे हैं |
वास्तविकता यह है कि जो पारंपरिक मीडिया पंडित यह मान बैठे थे कि इंटरनेट के नई मीडिया की पैठ कभी भी अखबार या टीवी जितनी नहीं हो सकती उनकी खुशफहमी अब टूटने लगी है | जो स्वर पहले नए मीडिया को नामंजूर करने के लिए उठ रहे थे, अब वे उसे समझने के लिए सवाल पूछ रहे हैं | कल तक नए मीडिया को नामंजूर करने वाला पारंपरिक मीडिया भी अब नए मीडिया से कंटेंट ले रहा है |
सोशल मीडिया का अर्थ
सोशल मीडिया के अर्थ को स्पष्ट करते हुए डॉ ललित कुमार लिखते हैं – ” इंटरनेट के प्रयोग से निर्मित उन मंचों के समूह को सोशल मीडिया कहा जाता है जिसके जरिए आम आदमी अपने विचारों को समाज के सामने रख सकता है”
वस्तुत: सोशल मीडिया एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा आप अपनी बात सरलता वह स्वतंत्रता से प्रकाशित व प्रसारित कर सकते हैं |
हिंदी-साहित्य में सोशल मीडिया का अवदान
सोशल मीडिया के आगमन का सबसे सकारात्मक प्रभाव यह रहा है कि अब समाचार पत्र व पत्र पत्रिकाओं के संपादकों की कृपा दृष्टि की आवश्यकता नहीं और न ही उनकी लेखन दृष्टि का अनुसरण कर लिखने की | पारंपरिक मीडिया में अक्सर ऐसा होता था कि अगर किसी पत्रिका का संपादक एक विशेष धर्म-जाति, राजनीतिक दल, विचारधारा, लेखन-शैली या साहित्य-विधा के प्रति अधिक मोह रखता था तो वह पत्रिका में उन्हीं लेखकों की रचनाओं को शामिल करता था जो उसकी विचारधारा के अनुकूल होते थे परंतु सोशल मीडिया ने संपादकों की इस तानाशाही प्रवृत्ति को नकारा है |
आज व्हाट्सएप, फेसबुक, यूट्यूब, ब्लॉगिंग, ट्विटर आदि ने लेखकों को नई मंच प्रदान किए हैं |
विजेंद्र सिंह चौहान ने सोशल मीडिया की संकल्पना को वेब 2.0 कहां है वे कहते हैं | वे कहते हैं- ” वेब 2.0 से पहले तक का इंटरनेट सूचना के वितरण तथा विक्रय का माध्यम था | कहीं और रची गई सूचना को एकत्रित करके प्रयोक्ता तक पहुंचाने पर बल दिया जाता था | आसान भाषा में कहें तो इंटरनेट स्वयं सूचना का सृजन नहीं कर रहा था वह महज उसके वितरण का माध्यम था |”
सोशल मीडिया की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें इंटरनेट का प्रयोक्ता ही सामग्री का रचयिता भी बन जाता है | सोशल मीडिया वास्तव में प्रयोक्ता-जनित सामग्री का मंच है | अंग्रेजी भाषा में इसे यूजीसी अर्थात यूज़र जेनरेटेड कंटेंट कहा जाता है |
इस प्रकार सोशल मीडिया एक ऐसी संकल्पना है जिसमें कंपनी केवल एक ढांचा या प्लेटफार्म उपलब्ध कराती है लेकिन वह सारी सूचनाएं जिनके लिए प्रयोक्ता इस मंच पर आता है वे स्वयं उस प्रयोक्ता के द्वारा या उस जैसे अन्य प्रयोक्ताओं द्वारा रची होती हैं |
सोशल मीडिया ने साहित्य-लेखन को चुनिंदा प्रकाशकों व लेखकों के वर्चस्व से मुक्ति दिलाई है, साहित्य-लेखन को आम आदमी से जोड़ा है | लेखक व पाठकों के पारस्परिक-संवाद की रचनात्मक शुरुआत की है | सोशल मीडिया के कारण हिंदी-साहित्य देश के गैर हिंदी-भाषी प्रांतों में अपनी पैठ बना रहा है | देश की सीमाओं को लांघकर हिंदी विश्व के विभिन्न कोनों में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा रही है |
विदेशों में न केवल हिंदी पाठकों की संख्या बढ़ रही है बल्कि श्रेष्ठ हिंदी साहित्यकार भी उभर कर सामने आ रहे हैं |
अपनी तमाम गुणों के बावजूद सोशल मीडिया ने भाषा व साहित्य संबंधी कुछ समस्याओं को भी जन्म दिया है | भाषा के नाम पर जिस खिचड़ी भाषा का प्रयोग किया जा रहा है उसे हिंदी के रूप में स्वीकार करना हिंदी की गरिमा को ठेस पहुंचाना है | नये पन के नाम पर हिंदी में जो भदेसी फ्लेवर आया है उसका हिंदी-साहित्य में प्रयुक्त होना कोई शुभ संकेत नहीं है |
🔹 अंग्रेजी भाषा के वे शब्द जो बहुत अधिक लोकप्रिय हो चुके हैं उनको देवनागरी लिपि में स्वीकार किया जा सकता है परंतु जिन शब्दों के हिंदी रूप अभी अधिक लोकप्रिय हैं उनके स्थान पर अंग्रेजी के शब्दों का नागरी में लिखा जाना अटपटा सा लगता है |
🔹 फेक न्यूज़ की भांति फेक लिटरेचर भी सोशल मीडिया से उपजी एक बड़ी समस्या है | आज सोशल मीडिया पर विशेषत: व्हाट्सएप और फेसबुक पर कबीर, रहीम, बिहारी, बच्चन, पंत, महादेवी वर्मा जैसे महान साहित्यकारों के नाम से ऐसी अनेक रचनाएं वायरल हो रही हैं जो वास्तव में उन्होंने कभी लिखी ही नहीं | इनमें से अधिकांश रचनाओं की विषय-वस्तु व भाषा-सौष्ठव इतना निम्नस्तरीय होता है कि इनसे उन महान साहित्यकारों की छवि धूमिल होती है | कभी-कभी धर्म, जाति व नारी-संबंधी रूढ़िगत परम्पराओं की पैरवी करती रचनाओं को गढ़ कर किसी महान साहित्यकार के साथ जोड़ दिया जाता है | ऐसा वे लोग करते हैं जो गली-सड़ी परंपराओं व सामाजिक-धार्मिक बुराइयों का समर्थन करते हैं और इनकी पुनः प्रतिष्ठा हेतु अभियान चला रहे हैं |
🔹 सोशल मीडिया ने किसी दूसरे रचनाकार की रचना को अपने नाम से प्रकाशित करना बड़ा सरल बना दिया है परंतु डिजिटल माध्यम में जहां कॉपी करना सरल है वही सर्च इंजन के माध्यम से किसी सामग्री के मूल स्रोत को खोजना भी सरल है |
🔹 सोशल मीडिया में अधिकांश रचनाकार प्राय: अपनी पुरानी रचना को ही पुनः प्रकाशित कर देते हैं जो पहले किसी समाचार-पत्र या पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी होती है इस प्रकार सोशल मीडिया के अधिकांश प्लेटफार्म परंपरागत साहित्य-लेखन के प्रचार-प्रसार का माध्यम बन कर रह गए हैं |
फिर भी कुल मिलाकर सोशल मीडिया में आए इन बदलावों से कई बेहतर काम हुए हैं | नए लेखकों और पत्रकारों की बड़ी खेप आई है जिनमें से कुछ निश्चित ही आगे जाएंगे और कुछ एक दो किताबों के बाद भीड़ में गुम हो जाएंगे परन्तु जो सुखद बात इस पूरी प्रक्रिया से निकलकर सामने आई है वह यह है कि अब साहित्य प्रतिष्ठित साहित्यकारों व प्रकाशकों की बपौती नहीं रहा | अब एक सामान्य व्यक्ति भी अपनी प्रतिभा के बल पर साहित्याकाश में अपनी चमक बिखेर सकता है और यही सोशल मीडिया की हिंदी-साहित्य को सबसे बड़ी देन है |
यह भी देखें
सतत संपोषणीय विकास ( Sustainable Development )
मशीनी अनुवाद : अर्थ, परिभाषा, स्वरूप व प्रकार
टिप्पण या टिप्पणी : अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य, विशेषताएं और प्रकार
संक्षेपण : अर्थ, विशेषताएं और नियम ( Sankshepan : Arth, Visheshtayen Aur Niyam )
पल्लवन : अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं और नियम ( Pallavan : Arth, Paribhasha, Visheshtayen Aur Niyam )